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अपने गढ़ में कांग्रेस और बीजेपी की बुरी गत

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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस को उन सीटों पर करारी शिकस्त मिली है, जहां उनका दबदबा था और जो उनकी प्रतिष्ठा से जुड़ी थी। कांग्रेस को जहां रायबरेली, अमेठी और सुल्तानपुर में हार का मुंह देखना पड़ा है, वहीं बीजेपी को अयोध्या में हार मिली है। इन जगहों पर इन पार्टियों की हार के कई मायने हैं, क्योंकि वहां जीत के लिए इन्होंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था।

गांधी परिवार की मेहनत नहीं लाई रंग: रायबरेली, अमेठी और सुल्तानपुर में सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी से लेकर पूरा गांधी परिवार जी-जान से चुनाव प्रचार में जुटा हुआ था। तीनों इलाके जोड़ दिये जाएं तो वहां कुल 15 सीटें थीं, जिसमें 2 को छोड़कर बाकी सभी पर पार्टी को हार मिली। रायबरेली की पांच सीटों में एक भी सीट कांग्रेस के खाते में नहीं आई। कुछ सीटों पर तो पार्टी तीसरे और चौथे नंबर पर रही। अमेठी में कांग्रेस को थोड़ी राहत जरूर मिली। उसे इलाके की पांच में से दो सीटें मिली।

पहले के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत बेहतर नहीं रहा था लेकिन, इस बार कांग्रेस को उम्मीद थी कि पिछले चुनावों का मिथ तोड़ते हुए वह इस बार अच्छा प्रदर्शन करेगी। एक दर्जन से अधिक सीटें कांग्रेस के रडार पर थी लेकिन फिर भी कांग्रेस की हार ने पार्टी को करारा झटका दिया है। कांग्रेस के लिए यह हार और ज्यादा इसलिए मायने रखती है, क्योंकि राहुल गांधी अमेठी से और सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद हैं। इसके अलावा संजय सिंह भी सुल्तानपुर से पार्टी सांसद है।

अयोध्या में हारी बीजेपी: कभी राम मंदिर के मुद्दे पर राजनीति की सीढ़ी पर छलांग मारने वाली बीजेपी अयोध्या में ही हार गई। अयोध्या सीट से बीजेपी को 1992 से अब तक हार का मुंह नहीं देखना पड़ा था। पार्टी ने इस सीट को प्रतिष्ठा से जोड़ रखा था। लेकिन, हार से बीजेपी को निराशा हाथ लगी है। हालांकि, मथुरा और काशी में मिली जीत ने इस दर्द पर मरहम लगाने का थोड़ा काम किया है।

अभी तक लखनऊ को बीजेपी का गढ़ माना जाता था। हो भी क्यों न, यह आखिर उसके सबसे कद्दावर नेता अटल बिहार वाजपेयी का संसदीय क्षेत्र हुआ करता था। इस बार चुनाव में अटल का जादू नहीं था और एसपी की साइकिल इस कदर दौड़ी की पूर्वी लखनऊ विधानसभा को छोड़कर कमल कहीं नहीं खिल सका। नौ में से सात सीटों पर कब्जा करके सपा ने लखनऊ में पहली बार यह साबित कर दिया कि अब उसका गढ़ राजधानी ही होगी। वर्तमान में लखनऊ में उसका कोई अपना विधायक नहीं था। मेयर भी बीजेपी के तो सांसद भी बीजेपी के । 110 में से 50 पार्षद भी बीजेपी के हैं। समाजवादी पार्टी की अप्रत्याशित जीत ने बीजेपी के सांसद लालजी टंडन को भी झटका दिया है, क्योंकि उत्तर लखनऊ से उनके बेटे आशुतोष टंडन गोपाल मैदान में थे। बेटे के टिकट के लिए टंडन ने पूरी ताकत लगा दी थी, लेकिन गोपाल को तीसरे पायदान पर जाना पड़ा।
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