भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत समर्थक

अन्ना आंदोलन का अगला चरण

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अन्ना के नेतृत्च में पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़क पर उतरा। एक ही मांग थी- `जन लोकपाल बिल´ भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त क़ानून। ताकि भ्रष्टाचार करने वालों को सज़ा मिले, उनके मन में डर पैदा हो। क्या जनता की मांग नाजायज़ थी?


कई जन्मत संग्रह हुए। 95% से ज्यादा जनता टीम अन्ना और जनता द्वारा बनाए गए `जन लोकपाल बिल´ के साथ थी। कई टी.वी. चैनलों ने सर्वे कराए। 80% से अधिक जनता ने जन लोकपाल बिल का समर्थन किया।
इसके बावजूद सरकार ने एक लूला-लंगड़ा, कमज़ोर और ख़तरनाक लोकपाल बिल संसद में प्रस्तुत किया। लोकसभा में यह पास भी हो गया। जल्द ही राज्यसभा में भी पास हो जाएगा। लालू यादव ने खुलकर कहा- कोई भी सांसद और कोई पार्टी जन लोकपाल बिल नहीं चाहती।


इसका मतलब देश की 80% से अधिक जनता ने एक क़ानून की मांग की और इस देश की संसद वह क़ानून देने में अक्षम रही। उल्टा देश की संसद जनता की उस मांग के खिलाफ खड़ी हो गई। तो क्या हम इसे `जनतंत्र´ कहेंगे?" इसी संसद में कलमाड़ी, कनिमोई, राजा जैसे अनेकों भ्रष्टाचारी सदस्य हैं। इसी संसद के 160 से अधिक सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। सवाल उठता है कि क्या यह संसद इस देश को गरीबी, भुखमरी और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला सकती है? या ये संसद ही इस देश की सबसे बड़ी समस्या बन गई है?


जन लोकपाल की लड़ाई ने भारतीय `जनतंत्र´ के खोखलेपन को जनता के सामने ला दिया है। क्या यह सरकार, यह व्यवस्था और यह संसद कभी भी जन लोकपाल क़ानून दे सकती है? चाहे किसी भी पार्टी की सरकार बने। क्या ये भ्रष्टाचारी नेता और पार्टियां कभी भी अपने गले में खुद फांसी का फंदा डालेंगे? जब तक पूरी व्यवस्था को मूल चूल रूप से नहीं बदला जाएगा, क्या तब तक जन लोकपाल क़ानून आ सकता है? क्या अब हमारी व्यवस्था के बारे में कुछ मूलभूत प्रश्न पूछने का समय आ गया है। 


जैसे- क्या आज की न्याय प्रणाली गरीबों को न्याय देती है? क्या विधानसभाएं और संसद वाकई `जन हित´ में क़ानून बनाती हैं? पुलिस जनता को संरक्षण देती है या आपराधिक को? सीबीआई भ्रष्टाचारियों को सज़ा दिलवाती है या उन्हें संरक्षण देती है? क्या कभी आपको ऐसा एहसास या अनुभव हुआ कि प्रधानमंत्री ने वाकई आपके और आपके परिवार की भलाई के लिए काम किया? क्या यह पूरा का पूरा सिस्टम बुरी तरह से सड़ नहीं गया है?


क्या इन सब प्रश्न के उत्तर मांगने का समय आ गया है\ क्या इस सड़ी गली व्यवस्था को बदलने का समय आ गया है? क्या एक नई व्यवस्था की स्थापना का समय आ गया है?


देश को वैचारिक क्रांति की जरूरत है। वैचारिक मंथन करके इन प्रश्नों के समाधान ढूंढने की जरूरत है। जिस दिन पूरा देश वैचारिक स्तर पर खड़ा हो गया- इस क्रांति को कोई नहीं रोक पाएगा। क्रांति अहिंसक होगी लेकिन देश में मूलभूत परिवर्तन करेगी।


इसके लिए देशभर में चर्चा समूहों का गठन किया जा रहा है। इनका नाम है- स्वराज चर्चा समूह या अन्ना चर्चा समूह।


इन समूहों के ज़रिए जनता सामूहिक रूप से यह प्रश्न खड़े करेगी और इनके समाधान ढूंढेगी। यदि आप भी इस क्रांति का हिस्सा बनना चाहते हैं तो ऐसे ही एक चर्चा समूह का गठन कीजिए और अनेकों ऐसे समूहों का गठन करने में मदद कीजिए।
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