|
अन्ना हजारे
|
लोकपाल बिल एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम चला रहे गांधीवादी व सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने पिछले दिनों जबलपुर पहुंचे. जबलपुर में उन्होंने अपने भाषण के दौरान कहा कि देश के संविधान में पार्टियों का कोई उल्लेख नहीं है. अन्ना ने कहा कि पार्टियों ने जनतंत्र का अतिक्रमण किया है. आजादी के समय ही इन पार्टियों को बर्खास्त कर देना चाहिए था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने लोगों के साथ धोखाध़डी की है. ये पार्टियां कभी भी देश का भला कर ही नहीं सकतीं. अन्ना ने बताया कि आज भी देश में अंग्रेजों के बनाए कानून चल रहे हैं. अब आजादी की दूसरी लड़ाई लड़नी होगी. उन्होंने कहा कि अंगे्रजों को देश छो़डे 67 साल हो गए हैं, लेकिन आज भी अंग्रेजो का ही कानून चल रहा है. गोरों की जगह काले अफसरों का राज चल रहा है. कांग्रेस ने संविधान के विरुद्घ चुनाव कराया और जनतंत्र को नेस्तनाबूत कर दिया. लोकपाल बिल पर उन्होंने कहा कि लोकपाल बिल को लेकर कांग्रेस ने धोखा दिया है. जब तक कांगे्रस लोकपाल बिल नहीं लाती, तब तक वह इसके लिए आंदोलन जारी रखेंगे. अन्ना ने कहा कि 5-6 माह बाद वे दिल्ली में अनशन पर बैठेंगे और लोकपाल बिल को लेकर सरकार के खिलाफ आर-पार की ल़डाई ल़डेंगे. अन्ना ने कहा कि लोकपाल पर सरकार के धोखे के कारण ही उन्हें जनतंत्र यात्रा पर निकलना पड़ा.
सिवनी में लोगों को संबोधित करते हुए अन्ना हजारे ने कहा कि मैं पिछले साल 40 साल से अपने घर नहीं गया. मेरे भाई के लड़कों का मुझे नाम तक नहीं मालूम. मेरे लिए देश सर्वोपरि है. इसी के लिए ही मैं जिऊंगा और देश के लिए ही मरूंगा. अन्ना ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मौजूदा कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ ल़डने के प्रति गंभीर नहीं है. आए दिन नये घोटाले सामने आ रहे हैं. उत्तराखंड आपदा में बरती जाने वाली लापरवाहियों पर भी अन्ना ने सरकार और उसके अधिकारियों द्वारा खूब लता़डा. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने समय रहते बचाव और राहत कार्य तेज किया होता, तो बदइंजामी के कारण इतनी मौतें नहीं हुई होतीं. अन्ना को सुनने के लिए लोगों का हुजूम उम़ड प़डा था. इस दौरान लोगों ने अन्ना से अपनी समस्याओ के बारे में भी बताया. किसानों ने अन्ना से अपनी परेशानियों के बारे में भी बताया.
आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
उत्तराखंड की विभीषीका को आपने स्वयं देखा है, लेकिन अब जो समाचार आ रहे हैं, वे दिल दहला देने वाले हैं. तीन हजार से 15 हजार तक लोग मर चुके हैं, ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा है. इस दैवीय आपदा में चारों धाम के तीर्थयात्री मरे हैं, पर उत्तराखंड की सरकार उन लोगों को अपनी सूची में शामिल नहीं कर रही है, जो स्थानीय निवासी थे. मैं अभी संपूर्ण उत्तराखंड की यात्रा से आया हूं और मैंने वहां इंफ्रास्ट्रक्चर की न केवल खस्ता हालात देखी है. बल्कि यह भी देखा है कि किस तरह से देख-रेख में लापरवाही बरती जा रही है. घाटियों में बसे गांव के गांव बह गए और गांव में रहने वाले लोगों की बड़ी संख्या इस आपदा का शिकार हो गई. यह बेहद दुखदायी है. इस भयानक स्थिति के बाद भी आपने उत्तराखंड की इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित नहीं किया है. मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप तत्काल उत्तराखंड में राष्ट्रीय आपदा घोषित करें, ताकि सरकारें अपने दायित्वो की गंभीरता को समझ सकें और प्राथमिकता के तौर पर इससे निपटने का इंतजाम कर सकें. इस आपदा का सामना करने में भारत की जनता को भी आगे आना चाहिए और मैं उनसे भी अपील करता हूं कि वे उत्तराखंड में अपनी जी-जान लगा कर लोगों की सहायता करें.
प्रधानमंत्री जी, यह आपदा दैवीय नहीं है, बल्कि यह आपदा मानवीय है. न सरकारों ने ध्यान दिया और न जनता ने. बेरहमी के साथ पेड़ काटे गए, बालू निकाली गई, खुदाई की गई और नदियों में मलवा और कचरा डाला गया. इस वजह ने प्रकृति को परेशान किया, जिसकी वजह से नदियों में बाढ़ आई, जिसने हजारों को लील लिया. पर्यावरण हमारे यहां सेमिनार या फैशन की चीज बनी हुई है, जबकि सरकार को चाहिए कि वह इसे आम जनता की जिंदगी का हिस्सा बनाए. लोगों को इस बात के लिए तैयार किया जाए कि अगर पर्यावरण शुद्ध नहीं हुआ, तो जनता इसी तरह की विभीषिकाएं और झेलेगी. मेरा आपसे अनुरोध है कि आप आपदा प्रबंधन की संपूर्ण व्यवस्था के बारे में दोबारा सोचिए. लेकिन अभी भीषण बारिश के दो महीने बाकी हैं, उसमें क्या होगा, इसकी चिंता सरकारों में दिखाई नहीं देती. मेरा आपसे अनुरोध है कि आप सभी राज्य सरकारों से कहें कि वह गंगा और यमुना सहित सारी नदियों की सेहत सुधारने के लिए तत्काल काम शुरू करें. मैं आपको विनम्रता से चेतावनी देना चाहता हूं कि अगर आज चूक हुई तो कल ये नदियां पहाड़ों के साथ मैदान में भी तांडव लीला करेंगी.
मैं देश की सभी स्वयंसेवी संस्थाओं से यह अनुरोध करता हूं कि वे उत्तराखंड में आए हुए संकट निवारण के लिए मानवता की दृष्टि से प्रयास करें. प्रधानमंत्री जी, मुझे बहुत सारे उत्तराखंड के लोगों ने कहा है कि आपके द्वारा भेजी गई सहायता राशि और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा दी गई सहायता राशि खर्च करते वक्त भारी भ्रष्टाचार हो सकता है. इसकी निगरानी की व्यवस्था की जाए, ताकि बाढ़ के बाद के निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार की थोड़ी भी गुंजाइश न रहे. मुझे डर है कि अगर ऐसा न हुआ, तो उत्तराखंड के बहादुर लोग आपकी सरकारों से निराश हो जाएंगे. मैं यह पत्र इस आशा से आपको लिख रहा हूं कि आप बिना विलंब किए उत्तराखंड के लोगों के बचाव, उनके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण और उनके लिए रोजगार के अवसर जुटाने के काम को प्राथमिकता देंगे.
धन्यवाद
आपका
कि. बा. तथा अण्णा हजारे,
रालेगणसिद्धी.